मेरा डरावनी फिल्म का सफर
मेरा डरावनी फिल्म का सफर
आज वह बचपन का पुराना मंजर याद आ गया।
रात का समय था यही कोई 8:00 बजे होगी भैया ने आकर बोला।
सूचना प्रसारण मंत्रालय की गाड़ी आई है।
साथ में फिल्म दिखाने वाली गाड़ी भी आई है।
चलो सब फिल्म देखने चलते हैं।
जमाना पुराना था
हर कॉलोनी में किसी के भी घर पर सिनेमा का पर्दा लगा देते थे।
सब अपने-अपने घर से दरी चद्दर लाते।
कोई कुर्सी लाते।
और वहां बैठकर ठाट से
फिल्म का लुत्फ उठाते।
उस दिन की हम बात बताएं हम सब गए।
फिल्म देखने साथ अपने चद्दर तकिए ले गए।
फिल्म थी बहुत डरावनी सी।
मुझको तो डरावनी फिल्मों से बहुत भयभीत करती थी।
सो आंखें बंद करके कान बंद करके चद्दर में दुबक कर बैठ गई।
भैया को बोला घर चलो उसको तो मजा आ रहा था।
बहुत देर से फिल्म बंद हुई तो हम घर गए, उस रात मेरे को इतना डर लगा
कि वह जिंदगी भर याद रह गया।
जब भैया और पिता जी ने बोला।
यह सब एक नाटक होता है।
क्यों डरती है।
मगर बालमन तो डरने से नहीं पीछे हटता।
उसके बाद तो मैंने कोई डरावनी फिल्म ही नहीं देखी।
क्योंकि मुझे मारपीट और डरावनी फिल्म आज भी अच्छी नहीं लगती।
