मैं वो कागज हूँ..
मैं वो कागज हूँ..
बस्स चलता ही रहा इसी जेब से उसी जेब तक
टिकट काटता गया इंसानियत का मेरी हथेली तक
माल, पैसा, रोकडा न जाने कितने नाम हैं मेरे
किसी के लिए बारिश,तो किसी के लिए चाहत
आज भी दिखती है हर कदम पर मुझे पाने की आहट
मैं वो कागज हूँ, जिसने कुडा देखा ही नही
आज़ाद परींदा हूँ, पर जेल से कम भाग्य नही
किसी के कटोरे में दो वक्त की रोटी हूँ
किसी के अय्याशी में सावन की बरसात हूँ
शरीर पे कुछ अंकों से मुल्यवान में हो गया
आजतक मेरे सिवा किसी ने किसी को गले नही लगाया..
किसको कितना नसीब होना ये मेरे तो हाथ में नहीं
होता तो खुद्द को में कभी कीमती पाता ही नही
नायक हूँ या खलनायक पता ही नही चलता
पर मेरे सिवा बदलते रिश्तों को तू समझ कैसे पाता?
मैं वो कागज हूँ...
जो सब कुछ दे सकता है, पर सुकून नही..
घमंड ना कर दोस्त, आज तेरे हाथ में
तो कल किसी और के हाथ में रहूंगा,
आशा करता हूँ कुछ कागज के टुकडों के लिए
तू मुस्कुराना नही भुलेगा.. ।