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Faraaz Khan

Others

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Faraaz Khan

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मैं एक शहर पुराना सा !

मैं एक शहर पुराना सा !

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तुम एक नई सड़क जैसी, और मैं एक शहर पुराना सा !

मैं तुमको रोज़ ही तकता हूँ , तुम मुझसे रोज़ गुज़रती हो,

धीरे-धीरे,  थोड़ा-थोड़ा, तुम मुझको रोज़ बदलती हो !

मैं रोज़ ही ख़ुद से कहता हूँ, कि मुझको नहीं बदलना है,

मैं जैसा भी हूँ,  ठीक हूँ मैं, मुझको ऐसा ही रहना है !

पर तेरे आने जाने से, कुछ मुझमें रोज़ बदलता है,

तेरी ज़िद पे, मेरी ज़िद का, कुछ ज़ोर कहाँ अब चलता है !

तेरी इस आवाजाही से, मैं रोज़ नया हो जाता हूँ,

मैं जितना तुमको पाता हूँ , मैं उतना ख़ुद खो जाता हूँ ! 


लगता है कुछ वक़्त में मैं, तेरे जैसा हो जाऊँगा,

हो जाओ पुरानी तुम थोड़ी, थोड़ा मैं नया हो जाऊँगा !

तुम एक नई सड़क जैसी, और मैं एक शहर पुराना सा !



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