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Navin C Chaturvedi

Others

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Navin C Chaturvedi

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माज़ी के मज़े लूटे जाएँ

माज़ी के मज़े लूटे जाएँ

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गीत जो दिल को लुभाते हैं वही गाये जाएँ।
और ये करते हुए माज़ी* के मज़े लूटे जाएँ॥

उँगलियाँ घिस के गुबारों से निकालें आवाज़।
कंकरी मार के मिट्टी के घड़े फोड़े जाएँ॥
और ये करते हुए माज़ी के मज़े लूटे जाएँ॥

काश कुछ लोग हमें दिल से लगा लें अपने।
भीड़ में गुमशुदा बच्चों की तरह रोये जाएँ॥
और ये करते हुए माज़ी के मज़े लूटे जाएँ॥

बालटी भर के अहाते में गिरा दें पानी।
फिर बिना वज़्ह गिरें, गिर के उठें, फिसले जाएँ॥
और ये करते हुये माज़ी के मज़े लूटे जाएँ॥

कोई कारन नहीं बस यों ही फलों के छिलके।
उस की यादों का सफ़र करते हुये छीले जाएँ॥
और ये करते हुये माज़ी के मज़े लूटे जाएँ॥

दिल के मजमूए* में रक्खे हैं जो ख़त के पुरज़े*।
मुँद कर आँखें गुलाबों की तरह सूँघे जाएँ॥
और ये करते हुये माज़ी के मज़े लूटे जाएँ॥

इन से बढ़ कर न मुहब्बत की दवा है कोई।
हिज़्र के लमहे* दवाई की तरह फाँके जाएँ॥
और ये करते हुये माज़ी के मज़े लूटे जाएँ॥

 

माज़ी - गुज़रा हुआ वक़्त 

मजमूआ - काव्य-संकलन 

ख़त के पुरज़े - चिट्ठी की कतरनें

हिज़्र के लम्हे - जुदाई के पल 


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