STORYMIRROR

माँ

माँ

1 min
27.2K


पास बिठाकर अब मुझे कोई समझाता नहीं 
बाद तेरे माँ कोई सर मेरा सहलाता नहीं 

यूँ तो रूपये बहुत से रहते हैं मेरी जेब में 
तेरे दिए सिक्के सा पर उनमें मज़ा आता नहीं

अमृत से भी स्वादिष्ट थीं तेरे हाथों की  रोटियां 
अब चाहे छप्पन भोग हो मुझको मगर भाता नही

मेरी जन्नत का था दरवाज़ा कभी जिनके तले 
चाह कर भी मैं अब  उन पैरों को छू पाता नही

सारी दुनिया घूम कर आया है ये हमको समझ 
माँ के जैसा इस जहाँ में दूसरा नाता नहीं


Rate this content
Log in