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माँ

माँ

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तुमने मुझे
कभी रखा था
पूरे एहतियात से
अपने अंदर...

आज,
मैंने भी रखा है अपने अंदर
हृदय स्थल में
पूरे एहतियात से तुम्हे

इसीलिए
बैठक की दीवार पर मैंने
नही लगाई
तुम्हारी तस्वीर
ना ही पहनाई तुम्हे चन्दनमाला

क्योंकि
अच्छी नही लगतीं तुम तस्वीर में
मेरे अंदर तुम जीती जागती हो
मेरे संस्कारों ,आदर्शों में
बसती हो

चाहती हूँ
सदियों तक चलती रहे
तुम्हारी परम्पराओं मूल्यों की
परिपाटियों तक लम्बी लकीर

इसीलिए
मैने नही लगाई तुम्हारी तस्वीर
ना ही पहनाई तुम्हे चन्दनमाला
क्योंकि तस्वीर में तुम
अच्छी नहीं लगतीं

 


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