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Shweta Rai

Others

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Shweta Rai

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माँ

माँ

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माँ बनके जब माँ का किरदार जिया मैंने

बचपन से अब तक की, तकलीफ़ों को महसूस किया मैंने


माँ जो रात को उठ उठ कर हमें देखतीं थीं

यानि माँ जानती थीं, कि मैं अँधेरे से डरती थी।


रंगत मेरी सुंदरता की परिभाषा में आड़े आती थी

क्या इसीलिए माँ, गले लगा कर हिम्मत बढ़ाती थी।


दिन भर बार बार समझाने पर भी न समझें कोई

पर माँ तो बिन कहे ही न जाने कैसे सब समझ जाती थीं।


निस्तेज़ आँखे, रुखे होंठ, व ढीली चाल

देखते ही माँ रसोई की तरफ़ खुदबख़ुद चली जाती थीं।


उलझे रिश्ते, थपेड़ों जैसे तंज और कड़वी बातों का कहर

माँ बिन सुने पीठ पर हल्की सी थपकी से सहलातीं थीं।


जब पास हो सब कुछ, हासिल हों दुनिया के ऐशो- आराम

कलफ़ लगी सूती साड़ी में लिपटीं

माँ की गरिमा कुछ अलग नज़र आती थीं।


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