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Sanjiv Upadhyay`

Others

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Sanjiv Upadhyay`

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माँ

माँ

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जब साथ वह तेरे होता था,

तेरी नसीहतें कड़वी लगती थीं

अब जाके समझ में आता है,

जब भी मैं अपनी ग़लती पर,

कोई ठोकर ख़ाता हूँ कि क्यूँ,

हर छोटी बड़ी गुस्ताखी पे,

माँ मुझ को डांटा करती थी


मैं याद करूँ तो, रोता हूँ,

कमरे में सबसे छुपकर के

कोई दर्द अगर दे जाता है,

माँ याद बहुत तू आती है

तेरी गुज़री बिसरी बातें,

फिर सोच सोच कर हँसता हूँ

तेरी स्मृतियों के आंचल में,


हँसते हँसते सो जाता हूँ

पर याद तू मेरी प्यारी माँ,

हर पल में आती रहती है

यादों में बस यही सोचूं मैं,

जब साथ वह तेरे होता था 


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