माँ - बाप
माँ - बाप
1 min
274
कितने बेबस हो जाते हैं वो माँ - बाप,
जिनकी औलाद उन्हें कह दे-
की अब जरूरत नहीं है हमे आपकी,
अब ज़िन्दगी को जीना सीख चुके हैं हम!
और माँ - बाप बेचारे उन्हें हँसकर अलविदा
कर देते हैं।
अंदर ही अंदर खुद घटते जाते हैं,
पर वो बेचारे किसी को अपनी "दर्द - ए - दासता"
सुना भी न पाते हैं।।
ज़िन्दगी की इस कशमकश में
कुछ लोग (औलाद) इतने मशरूफ हो जाते हैं!
की इस भीड़ भरी दुनिया में
अपने माँ - बाप को भी नहीं पहचान पाते हैं!!
पर अफसोस!
"दर्द - ए - इम्तिहान तो तब शुरू होता है,
जब यही औलाद एक दिन खुद माँ - बाप बन जाते हैं!!