लकीरें हाथ में जो हैं, पुरानी हैं
लकीरें हाथ में जो हैं, पुरानी हैं

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लकीरें हाथ में जो हैं, पुरानी हैं
नई,हाथों से अब अपने बनानी हैं
उजाड़ेंगे बसी हैं वो जो पहले से
बस्तियाँ नई किसने बसानी हैं
पुरानी झाड़ियाँ जो हैं जला डालो
फूलों की नई कलमें लगानी हैं
दवाई हो या बम कोई, उन्होंने तो
हम पर ही ये चीज़ें आज़मानी हैं
उठा कर दलित बच्चों को भी चूमेंगे
मत भूलो ये सब चालें शैतानी हैं
बहुमत के लिऐ क्या ईंट क्या रोड़ा
कीचड़ से भी ये चीज़ें उठानी हैं।