लाडो रानी
लाडो रानी
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जिस बाग़ की मैं हूँ बुलबुल, कैसे उसे भुलाऊंगी
ना समझ पराई बाबुला, उड़-उड़ आती जाऊँगी,
उड़-उड़ आती जाऊँगी ।
दोनों बाग़ों की मैं खुशबू, दोनों को महकाऊँगी
इधर बाबुल उधर बाबुल, बीच अमृत रस बरसाऊंगी
ना समझ पराई बाबुला, उड़-उड़ आती जाऊँगी,
उड़-उड़ आती जाऊँगी।
हंसते-खेलते बसे रहें, बाबुल तेरे दर के घेरे
फिर मैं नार कहलाऊंगी, फेरा मारी जाऊंगी
ना समझ पराई बाबुला, उड़-उड़ आती जाऊँगी,
उड़-उड़ आती जाऊँगी।
--By Sukhbir Kaur Khalsa