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Manpreet Kaur

Others

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Manpreet Kaur

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लाडो रानी

लाडो रानी

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जिस बाग़ की मैं हूँ बुलबुल, कैसे उसे भुलाऊंगी

ना समझ पराई बाबुला, उड़-उड़ आती जाऊँगी,

उड़-उड़ आती जाऊँगी ।

दोनों बाग़ों की मैं खुशबू, दोनों को महकाऊँगी

इधर बाबुल उधर बाबुल, बीच अमृत रस बरसाऊंगी

ना समझ पराई बाबुला, उड़-उड़ आती जाऊँगी,

उड़-उड़ आती जाऊँगी।

हंसते-खेलते बसे रहें, बाबुल तेरे दर के घेरे

फिर मैं नार कहलाऊंगी, फेरा मारी जाऊंगी

ना समझ पराई बाबुला, उड़-उड़ आती जाऊँगी,

उड़-उड़ आती जाऊँगी।

 


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