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Raghav Batra

Others

5.0  

Raghav Batra

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क्यूँ

क्यूँ

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यह एक सुनहरी चांदनी रात की बात है

मैं खुले आसमान की ओर अपनी नज़रे

टिकाये बैठा था दिमाग में अनेक सवालों

की पंचायत लगाए बैठा था 

कैसे, कब, कहाँ मेरे पास हर तरीके का

सवाल था 


इतनी भीड़ देख दिमाग में मच गया बवाल था 

कोने में देखा तो एक सवाल अपनी दुनिया

में खोया था 

समाज के अत्याचार देख खून के आँसू रोया था 

क्यूँ था ये सवाल 

क्यूँ है इतनी नफ़रत चारों ओर क्यूँ है

इंसान ऐसा 

क्यूँ जी रहे हम ज़िन्दगी ये क्यूँ हर जगह अब

छाया था मेरे मन में मायूसी लाया था 

अब इंतज़ार ही लग रहा इस सवाल का

जवाब था अभी तक जिंदगी जी रहा था

जैसे कहीं का नवाब था



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