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क्योंकि मैं 'मैं' हूँ

क्योंकि मैं 'मैं' हूँ

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जो थक कर बैठ जाऐं

घर लौट जाऐं मुँह छिपाये

मैं वो नहीं, मैं कुछ और हूँ!

लड़ूँ तब तक जीत न जाऊँ जब तक

लौटूँ घर विजयी होकर

मैं वो हूँ, हाँ मैं वो हूँ।

 

जो चलें सामान्य पथ पर

भेड़ चाल में आँखें मूँदे

मैं वो नहीं मैं कुछ और हूँ

अंजान राहों में चल पड़ूँ

डगमगाऊँ तो सँभल भी जाऊँ

मैं वो हूँ हाँ मैं वो हूँ

 

जो तलवार काट जाये

मासूमों के शीश अपार

मैं वो नहीं मैं कुछ और हूँ

मैं वो कुशाग्र धार हूँ

जो काट दे दुश्मनोंं को

झुक जाये नेक के सामने

मैं वो हूँ हाँ मैं वो हूँ।

 

 

जो शूल दे दर्द, बहाये रक्त

जान जीवन को दे निरंतर कष्ट

मैं वो नहीं मैं कुछ और हूँ

मैं वो फूल हूँ जो महकाये जीवन

रंग भर दे फीके संसार में

मैं वो हूँ, हाँ मैं वो हूँ।

 

मिट्टी का छिन्न विछिन्न टुकड़ा नहीं

मैं तो अटल अविचल प्रचंड पहाड़ हूँ

जिसमें बसता अपना संसार है।

मैं वो हूँ हाँ मैं वो हूँ।

गर है हिम्मत तो तोड़ मुझे

है जिगर तो मोड़ मुझे

मैं तो मैं हूँ

और यही मेरा सार है।


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