क्या करता हूँ और क्यों करता हूँ
क्या करता हूँ और क्यों करता हूँ
ना जाने क्या करता हूँ ,
और क्यों करता हूँ।
घर मे बिस्तर में
अब भी दो करता हूँ।
जब भी सोता हूँ
बिस्तर में याद तेरी करता हूँ।
ना जाने क्या करता हूँ ,
और क्यों करता हूँ।
तू ना आये सपने में
लाख कोशिश करता हूँ।
दिल तो बहुत करता है
इजहार कर दू।
मन कमबख़्त ही सुनता नहीं।
ना जाने क्या करता हूँ ,
और क्यों करता हूँ।
सोचता हूँ की तुझसे दूरी बना लू ।
में दूरियों को नजदीकी समझ लेता हूँ
तेरी यादे काटे की तरह है
निकालो तो जख्म देती है।
ना जाने क्या करता हूँ ,
और क्यों करता हूँ।
मैं सोचता नहीं पर मजबूर हूँ।
कुछ बाते ऐसी हैं जो में
खुद सोच के कंफ्यूज हूँ।
जो करा सही करा मुझे
समझना जरूरी हैं।
ना जाने क्या करता हूँ
और क्यों करता हूँ।
मैं जैसा भी तेरा हूँ
मैं बादल हूँ बरसात है
तू जिस दिन से दूर
जिये थे हम उस दिन से
साथ ही थे हम ना जाने
क्या करता हूँ , और क्यों करता हूँ।