कविता
कविता
1 min
1.2K
माँ
एक अलौकिक शब्द,
माँ से बढ़कर
इस दुनिया में कुछ भी नहीं!
जब माँ का आँचल
होता है हमारे सर पर
ख़ुद चाँदनी करती है नमन
ममता की छाँव को झुककर,
जब माँ के ललाट के तेज़ से
टकराती हैं सूरज की किरणें
तब किरणों की
ख़ुद रौशनी तक हार जाती है।
माँ के पदचिन्हों में
ज़न्नत छुपा होता है
'माँ' के विस्तार के समक्ष
ब्रह्माण्ड भी छोटा पड़ जाता है!