कवि कैसा चोर सा
कवि कैसा चोर सा
1 min
14.1K
कवि कैसा चोर-सा
चोरी करता लाज
रूप रंग और साज
भिक्षुकों का भीख
बेसहारी चीख
वात्सल्य का ब्याज भी
सैकड़ों अभिलाष भी
गणतन्त्र से गण चुराता
तंत्र का उल्लास भी
कवि कैसा होड़-सा
पीछे रहने में ही जिसमें जीत हो
मैं लघु हूँ मानता यह प्रीत हो
आपका है आपको यह रीत हो
होड़ हो पर आपसी मनमीत हो
कवि कैसा मोर-सा
रूप यौवन की घटा को देखकर
प्रेम की धूमिल छटा भर देखकर
मानकर कि कब यहीं बरसेगा यह
झूम उठता एक पग बस टेककर
कवि कैसा चोर-सा
होड़-सा और मोर-सा