कुल्फी
कुल्फी
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आ गई है गर्मी,
आ गई हूँ मैं,
लोग हो जाते ताज़ा खाकर मुझे,
मेरा नाम कुल्फी है।
लोग हो जाते पसीनों से लत-पथ,
तीन-चार महीने चलते गर्मियों के दिन,
गर्मी से बचते रहते, चलाते पंखा-कूलर,
पर गर्मियों के दिन है अधूरे मेरे बिन।
छोटी, बड़ी, पतली, मोटी,
कई प्रकार की मिलती हूँ मैं,
पिस्ता, बादाम, काजू है मेरे स्वाद,
दाम और नाम मेरे अलग-अलग है,
बच्चे से लेकर बूढ़े, सभी पसंद करते हैं मुझे,
मेरा नाम कुल्फी है।
