कुछ रातें भारी होती हैं
कुछ रातें भारी होती हैं
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कुछ रातें भारी होती हैं
जब उफनता है तूफ़ान कुछ पुरानी यादों का ,
जब न रहता कोई मतलब अंधेरे में छिपी बातों का।
जिंदगी टुकड़ों में बिखर सी जाती है ,
सारी उम्मीदें जब टूट सी जाती हैं।
बस हाथ थामकर कोई किनारा दिखा दे ,
मन कहे कि इन आंखों की नमी से किसी का कंधा भिगो दे ।
कुछ रातें भारी होती हैं कि
सांस लेना भी दर्द सा लगता है।
कुछ रातें भारी होती हैं कि
ज़िन्दगी का होना भी बेकार सा लगता है ।
