कुछ दर्द ज़िन्दगी के....
कुछ दर्द ज़िन्दगी के....
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अस्पताल के कमरे का ये अकेलापन
अंतर्मन तक दर्द की चुभन
हर पल आशा और निराशा से जूझता मन
और कुछ नहीं बस, अब हिस्से है ज़िन्दगी के।।
फिर से दौड़ने की चाह
बेफिक्र चलने की उम्मीद
वो झूम झूम के नाचने को करता मन
और कुछ नहीं बस अब किस्से है ज़िन्दगी के।।
हर बार यूँ आँखों का नम हो जाना
अपनों को याद करते करते कहीं खो जाना
टूटती उम्मीद को बांधकर फिर से खड़े हो जाना
और कुछ नहीं बस अब मुश्किल मोड़ है ज़िन्दगी के।।
संभालना 'ख्याति', ना टूट के बिखर जाना
ये सब तो बस कुछ दर्द है ज़िन्दगी के ।
