कश्मीर
कश्मीर
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मिल्कियत नहीं है किसी की इस ज़मी से,
और वतन के निशान वो बनाते चले गए |
हुसना जुदा हुई अपने ही हुस्न से,
और वो है की लकीरें सजाते चले गए |
झेलम से पूछो तासीर है क्या उसकी!
लाशें उसमे दफ्नाते चले गए |
कफस में रहे गए हैं ये गुलशन पुराने,
और वो हैं की मुहर लगाते चले गए |