कर्म
कर्म
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कहीं ना कही कर्मो का डर है |
नहीं तो गंगा पर इतनी भीड क्यो है ?
जो कर्म को समझता है उसे धर्म को
समझने की जरुरत ही नहीं
पाप शरीर नहीं करता विचार करता है |
और गंगा विचारोको नहीं |
सिर्फ शरीर को धोती हैं |
शब्दो का महत्व तो
बोलने के भाव से पता चलाता हैं |
वरना वेलकम तो
पायदान पर भी लिखा होता है |