कोरोना की दहशत
कोरोना की दहशत
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कितने सुहाने, बेखौफ होते थे बसंत के रंग।
मगर अब कोरोना की दहशत, और रंग में भंग।
जैसे कोरोना ना हुआ, आदमखोर कोई भुजंग
सारा आनंद ले गया, ले गया हर उमंग।
सिद्धविनायक के कपाट, बम्लेश्वरी मेला भी बंद।
अब कहाँ वो भक्ति, कहाँ भक्त होंगे मलंग।
बहुत से और हुए विषाणु, अजब कोरोना का ढंग।
शादी, समारोह, स्कूल, दुकानें बंद, सब बेरंग
कहाँ शक्तिशाली चीन, इटली अमेरिका, सब दंग
एक सूक्ष्म जीव का इतना आतंक, इतना हुड़दंग।
बाप रे! अब अल्लाह ही बचाये, फिर लौटे जीवन तरंग।
सब से मिल सकें, काम सब चल पडे़, सब रहें संग
फिर वही उल्लास, फिर बसंती रंग।