-: कोहरा :-
-: कोहरा :-
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सुबह-सुबह मुझे मीठी सी
ठंडक देता है ये कोहरा,
निकलते हुए दिन के साथ ही
आँखों से दिखाई पड़ता है ये 'कोहरा' l
दूर से देखूं तो सामने कुछ नहीं
पास जाकर देखूँ तो मिलता है सबकुछ,
ऐसा लुका छुपी का खेल
मुझसे खेलता है ये 'कोहरा' l
खेत में बढती हुई धान के उपर
मस्त झूमता है ये कोहरा,
और अपनी प्यारी नजाकत से
उन्हे हलका सा भिगो देता है ये 'कोहरा' l
इंतजार से भरी आँखे मेरी
अब राह देखती हैं धूप की,
उगते हुए सुरज की रोशनी के साथ ही
धुंधला पड़ जाता है ये 'कोहरा' l
दिनभर के धूप के बाद
फिर से याद आता है मुझे ये कोहरा,
और सो जाती हूं मैं इस ख़ुशी से
कि फिर से आएगा ये 'कोहरा' l