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Geeta Dholwade

Others

5.0  

Geeta Dholwade

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-: कोहरा :-

-: कोहरा :-

1 min
345


सुबह-सुबह मुझे मीठी सी 

ठंडक देता है ये कोहरा, 

निकलते हुए दिन के साथ ही 

आँखों से दिखाई पड़ता है ये 'कोहरा' l


दूर से देखूं तो सामने कुछ नहीं 

पास जाकर देखूँ तो मिलता है सबकुछ, 

ऐसा लुका छुपी का खेल

मुझसे खेलता है ये 'कोहरा' l


खेत में बढती हुई धान के उपर 

मस्त झूमता है ये कोहरा, 

और अपनी प्यारी नजाकत से 

उन्हे हलका सा भिगो देता है ये 'कोहरा' l


इंतजार से भरी आँखे मेरी 

अब राह देखती हैं धूप की, 

उगते हुए सुरज की रोशनी के साथ ही 

धुंधला पड़ जाता है ये 'कोहरा' l


दिनभर के धूप के बाद 

फिर से याद आता है मुझे ये कोहरा, 

और सो जाती हूं मैं इस ख़ुशी से 

कि फिर से आएगा ये 'कोहरा' l


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