जो बिगड़ा कुदरत का वापस लौटा नहीं सकते
जो बिगड़ा कुदरत का वापस लौटा नहीं सकते
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कुदरत और उसके तोहफ़े
इन तोहफ़ों से ही चल रही दुनिया
ये नहीं तो ज़िंदगी नहीं.................
है मनुष्य इतना ख़ुदगर्ज़ के हम सोच नहीं सकते,
अपनी लालच से को बिगड़ा कुदरत का
चाहकर भी लौटा नहीं सकते।
हवा में थी पहले एक अलग ही खुशबू,
बारिश की हर बूंद में था एक अलग ही जादू,
लालच में भर दिया सांसों को धूएं से ,
और छीन लि वो खुशबू हवा से,
बारिश का वो जादू वापस ला नहीं सकते,
जो बिगड़ा कुदरत का वापस लौटा नहीं सकते।
फिर भी है ये कुदरत हम्पर इतनी मेहरबान,
देती है हर मुश्किल, हर बीमारी का समाधान।
इसके एहसान कभी उतार नहीं सकते,
जो बिगड़ा कुदरत का वापस लौटा नहीं सकते
वापस लौटा नहीं सकते।
