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Sudhir Srivastava

Others

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Sudhir Srivastava

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जज्बात

जज्बात

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चुनावों का मौसम क्या आया 

नेताओं को जनता के जज्बातों से 

खेलने का समय आ गया ।

सबके पिटारे से जाति धर्म

ऊँच नीति के हिसाब के साथ

अपने स्वार्थ वश वादे निकल रहे हैं,

निंदा नफरत, आरोप प्रत्यारोप के

अनगढ़ दौर चल रहे हैं।

जनता भी खूब बहकती है जज्बातों में

जाति धर्म की हवा में बह रही है,

स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार ,सुरक्षा

महंगाई, बेरोजगारी की फिक्र नहीं हैं,

बस नेता अपनी जाति धर्म का हो

चोर, डाकू, माफिया, कातिल क्यों न हो

पाँच साल मुँह भले न दिखाये,

पर आज हमारी पैरोकारी के 

बड़े बड़े हसीन सपने दिखाए

हमारे बच्चों को अपने आगे पीछे घुमाए।

हम बिना सुख सुविधा के रह लेंगे

हमारी औलादें बेरोजगार रह

मेहनत मजूरी से पेट भर लेंगे

हमारी बहन बेटियां सुरक्षित रहें न रहें

पर सांसद विधायक बिरादरी का हो।

आरोप लगाने वाले तो

आरोप लगाते ही रहेंगे,

हमारी बिरादरी का नेता

भला हमारे जज्बातों से कहाँ खेलता है

वो तो हमने उन्हें खेलने के लिए

मुक्त कर रखा है,

वो हमारी बिरादरी का नेता है

अच्छा है बुरा है,

हमारे जज्बातों से खेलता है

सब चलता है क्योंकि

वो बच्चा हमारे घर का है,

बच्चा है, जज्बातों से खेल रहा है

इससे क्या फर्क पड़ता है

बिरादरी का नाम तो रोशन कर रहा है।



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