जिंदगी
जिंदगी
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जिंदगी अब बंजारा बन चली है।
जिस शहर में हम पले-बढ़े...
उस शहर के हम मेहमान बन चले है।
होली दीवाली अब तस्वीर बन चली है।
जो रंग वहाँ दोस्ती के नाम बने...
वो रंग अब फीका बन चला है।
ख्वाबों के हम गुलाम बन चले है।
जिस आँचल तले हम ख़्वाब देखे...
वो ख़्वाब सारे उदासी बन चले है।
