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जीवन की शीतलता

जीवन की शीतलता

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तुम चाँद हो या सूरज

कभी -कभी चाँद लगते हो

कभी-कभी सूरज लगते हो ...


जैसे कभी दिल की ठंडक तुम

तो कभी दिल में आग लगा देते तुम...


प्रेमी बनकर भी आसमान से ज्यादा

दूर रहते हो तुम, अंतरिक्ष में

हर पल तुम्हे ढूंढने निकलते हैं...


तो कभी-कभी अमावस्या होती है

या फिर ग्रहण होता है...

जो तुम्हें हमसे और दूर लेकर जाता है...

नजरों से ओझल कर जाता हैं...


पर, थोडी ही देर में

कशमकश दूर होकर

तुम सामने आ जाते हो ...

प्रेमी मेरे अंतरिक्ष से उतरकर...

नजरो के सामने ...


कभी लगता है

तुम खुद ही कभी चाँद बनते हो

मुझे शीतलता मिले इस लिए और

कभी -कभी सूरज बन जाते हो

तुम्हारे कुछ जज्बात

हमे जला न दे इस लिए


हमें तुम मंजूर हो

चाहे चाँद बनो या सूरज

हमारे प्रेमी उम्र भर बने रहो

क्योंकी जीवन में

धूप और छाँव दोनों की जरूरत हैं

समझे ना ...!!!


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