STORYMIRROR

Shoumik De

Others

3  

Shoumik De

Others

जिद-ओ-जहद

जिद-ओ-जहद

1 min
286

गम-ऐ-जिंदगी का मेरे अभी मुकम्मल जहाँ नहीं

ये दुनिया अभी जीती नहीं और में अभी हारा नहीं

उठते हैं ठोकर खा के, गिर के, हम बार बार

पड़े रहें राहों में हार कर… ये हमें गंवारा नहीं ,

तूफ़ान-ऐ-नूह में डूब गयी कश्तियाँ कितनी

डूबा न सकेंगी हौंसला मेरा

 तो क्या हुआ गर पास किनारा नहीं,

रोक लिया था कभी.. उन… काफिर निगाहों ने…

रवानगी दिल-ऐ-रूमानी में न सही… तू… रुकना दोबारा नहीं,

अपने हे उठा ले जाहौंसलाते हैं नीव का पत्थरते हैं नीव का पत्थर

ऐसे घर में क्या हमारा है… और क्या तुम्हारा नहीं?

चोट खाए है तो क्या, तो क्या गर कोई सहारा नहीं

ये दुनिया अभी जीती नहीं और में अभी हारा नहीं!!



Rate this content
Log in