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अरविन्द कु सिंह

Others

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अरविन्द कु सिंह

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जाने कहां से लाती है

जाने कहां से लाती है

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ना जाने बेटी यह हुनर कहाँ से लाती है?

कल तक अपने माँ पापा की दुलारी अपने सास ससुर को मम्मी पापा कहना सीख गई।

कल तक जिंस टीशर्ट पहनने वाली साडी पहनना और सर पर आँचल लेना सीखगई।

कल तक मायके मे आठ बजे तक सोनेवाली,

सबके लिए सुबह पाँच बजे चाय और आठ बजे तक नाश्ता बनाना सीख गई।

कल तक बहन और भाभी से लडने वाली आजननद का मान करना सीख गई।

कल तक भाईओं से शरारतें करने वाली आज देवर को दुलार देना सीख गई।

कल तक बेफिकर जीने वाली आज पति की हर जरुरत के लिए फिक्र करना सीख गई।

कल तक फोन पर दोस्तों से घंटों बात करनेवाली आज हूँ हाँ मे जबाब देना सीख गई।

कल तक अपनी बकबक से सबको परेशान करने वाली इशारों मे जबाब देना सीख गई।

कल तक दिनभर सैर सपाटा करने वाली रसोघर मे घुमना सीख गई।

कल तक घर मे सबसे पहले खाना खाने वाली सबके बाद खाना सीख गई।

कल तक चाउमिन बर्गर पिज्जा खाए बिना एक दिन ना रहने वाली आज सादा खाना खाने सीख गई।

डिस्को पाॅप और हनी - मिका के गाने की दीवानी, आज देवी गीत और भजन गाना सीख गई।

कल तक हर बात मे पेर पटकने वाली, पति और सासू माँ के पैर दबाना सीख गई।

कल तक पर मे स्वछंद और बेफिक्र रहने वाली आज घर की जिम्मेदारी संभालना सीख गई।

कल तक मम्मी मम्मी की रट लगानेवाली आज खुद के लिए मम्मी सुन कर धीरे से मुस्कुराती है।।।

इतना बदल जाने का हुनर ये बेटी ना जाने कहाँ से लाती है


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