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इश्क

इश्क

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यूं खामखाह ख्यालों में,

जिए जा रहा हूँ।

उनसे बेइंतहा मुहब्बत,

किये जा रहा हूँ।

 

ना मांगी है इज़ाज़त,

न मिली कभी मंजूरी,

फिर क्यों मैं ये गफलत

किये जा रहा हूँ।

 

जो बच जाते,

कुछ लम्हात फुर्सत के,

मैं लिखता इश्क

की आयतें।

 

पर क्या करूँ

हलकान इश्क में

हुए जा रहा हूँ।

 

टूटा तो नहीं है,

अभी दिल

पर लिखता हूँ

कुछ ऐसे

जैसे फटे हो मेरे कपड़े-लत्ते,

इश्क की जानिब।

 

बस हर्फों से

दिल की चद्दर

सिले जा रहा हूँ।।

 


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