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Manisha Kanthaliya

Others

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Manisha Kanthaliya

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इंसान सा बस रह गया है

इंसान सा बस रह गया है

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चाहतों का चादर सिमट कर रूमाल सा बस रह गया है 

समझता था खुद को खुदा , इंसान सा बस रह गया है 

बीमारी का रूप धर आयी हाय विपदा कितनी बड़ी 

आसमां छूना था जिसको , पुआल सा बस रह गया है। 


भागती सड़कों पर हर पल दौड़ती थी ज़िन्दगी 

भूल बैठा था वो इंसा उस खुदा की बन्दगी 

और फिर उसने अपना जलवा कुछ यूँ दिखाया 

गलतियों का तेरी अहसास कुछ यूँ दिलाया।


पछतावे की आग में जल भस्म सा बस रह गया है 

चाहतों का ...।


अपने जो थे गले कभी उनको लगाता था नहीं 

लूटता था बस खजाना बाँटता तो था नहीं 

वो प्यार और वो खजाना आज सब को दे रहा है 

पिंजरबद्ध होकर ही आखिर स्वच्छ सांसे ले रहा है 


और इस कुदरत का आखिर गुलाम सा बस रह गया है 

चाहतों का .....।



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