इजहार ए बचपन
इजहार ए बचपन
वो कागज की नांव वो लकड़ी का घोड़ा
वो रबर की पेंट वो भैया का शर्ट
वह आम का बगीचा और बरगद की छांव
वो तालाब का ठंडा पानी और नहरों में रवानी
कच्ची इमली का खट्टापन मुस्कान दिला जता है
वह दिन भी बड़ा याद आता है वह दिन भी
हम बढ़ते गए सब भूलते गए बचपना
ना जाने कहां चला गया मेरे गांव का
सुख शहर में कहीं दूर चला गया
बंद कमरों में रहकर अंग्रेजों की तहजीब
सीख कर हमारी अपनी संस्कारों से समझौता किया
वो नाना नानी का प्यार दादा-दादी सा यार सब
पीछे छूट गया शहरों में आकर गांव का इंसान बिक गया
भविष्य की कामना करते करते वर्तमान पीछे छूट गया
ज़िंदगी मे अभी तो बहुत चलना बाकी है
अभी तो कई इम्तिहानों से गुज़रना बाकी है
हमे लड़ना है ज़िंदगी की सभी मुश्किलो से
हमने तो मुठ्ठी भर ज़मीन नापी है।
अभी तो हमे सारा जहाँ नापना बाकी है।
