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ईश्वर से प्रश्न

ईश्वर से प्रश्न

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हे ईश्वर, मैं अवाक रह जाती हूँ, 

जब तुम्हें तुम्हारे बारे में पढ़े और सुने गऐ गुणों के बिल्कुल विपरीत पाती हूँ।

कहे जाते हो तुम करुणासागर, 

पर लोगों के बड़े भयंकर दुख भी तुम पत्थर को पिघला नहीं पाते, आता है कोई भूकंप या तूफ़ान और ले लेता है हज़ारों

लाखों के प्राण, 

पर तुम्हें दया नहीं आती,

अनाथ बच्चों और घायलों की हृदय विदारक चीखें तुम पर असर नहीं करतीं।

क्या तुम बहरे हो? जो ये सब सुन नहीं पाते।

क्या तुम अन्धे हो?जो ये सब देख नहीं पाते।

अथवा तुम हो कठोर निर्दय बिल्कुल किसी पाषाण समान?

तुम्हीं बताओ फिर क्या कहे जा सकते हो तुम करुणासागर? 

कहे जाते हो तुम सर्वशक्तिमान, 

पर सुना था कुछ दिनों पहले, 

एक बालिका गई संध्या को तुम्हारे मंदिर में दीप जलाने, 

तुम्हारे अँधेरे घर को रोशन करने, 

पर तुम्हारे घर में ही और तुम्हारे सामने ही, 

दो हैवानों की हवस ने उसके जीवन में सदा के लिए अँधेरा कर दिया, 

पर तुम कुछ न कर पाऐ, उसे बचा न पाऐ।

कैसे कहे जा सकते हो तुम सर्वशक्तिमान? 

जब ऐसी अनेक अबलाऐं रोज लुट जाती हैं, 

और अनेक निर्दोषों की हत्या की जाती है, 

पर तुम कुछ नहीं कर पाते, ये सब रोक नहीं पाते।

कहे जाते हो तुम सच्चे न्यायी, 

पर तुम्हारी बनायी इस दुनिया में सच्चे लोग उठाते हैं सदा दुख

और बुरे तथा अत्याचारी लोगों को मिलता है सब प्रकार का सुख।

फिर तुम्ही बताओ क्या कहे जा सकते तुम सच्चे न्यायी? 

सत्य तो यह है और कटु सत्य है कि तुम हो सबसे बड़े अन्यायी।

अब तुम्हीं बताओ कि तुम से अंधे, बहरे, गूँगे, अन्यायी, निर्दय की पूजा और भक्ति भला है किसी काम? 

मैं तो बस ये सोचती हूँ कि तुम ऐसे हो, 

फिर भी क्यों कहलाते हो दया निधान, सर्वशक्तिमान और महान।


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