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VIMLESH SINGH

Others

3  

VIMLESH SINGH

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हे स्वार्थ !

हे स्वार्थ !

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हे स्वार्थ !

एक तू ही तो है

जिसने लोगों को जोड़ कर रखा है,


वरना लोग तो ऐसे अलग हुए हैं, 

जैसे अपने ही सिर के बाल सिर से

अलग होने पर फिर कभी जुड़ नहीं पाते 


ऐसे में ... हे स्वार्थ

तू इतना बेजोड़ और शक्तिशाली है

कि तेरे आगे दुनिया नतमस्तक होकर

एक गंजे को भी यह कहने से नहीं

कतराते की

आपके सिर के बाल बड़े काले,

घने और रेशमी हैं 


कोई जाति - धर्म के कारण

कोई अमीरी - गरीबी के कारण

कोई शिक्षित - अशिक्षित के कारण 

कोई अन्य - अन्य कारणों के कारण

तो कोई कारण - अकारण

अपनी - अपनी ढपली अपना - अपना

राग अलापते हैं,

पर जैसे ही तेरा आगमन होता है

सब अपनी - अपनी ढपली फेंक

वो ! वे राग अलापते हैं

जो, तू चाहता है।


हे स्वार्थ !

तेरी शक्तियों के सामने तो वो

सारी शक्तियाँ

अवशेष मात्र रह जाती हैं,

जिन्हें जोड़ कर

इस सृष्टि की रचना हुई थी


हे स्वार्थ !

तू अद्भुत है और अतुलनीय भी है


तू चाहे तो गदहे को बाप कहलवा दे 

तू चाहे तो बाप को गदहा कहलवा दे

तू चाहे तो पत्थर को पूजनीय बनवा दे

तू चाहे तो पूजनीय को पत्थर बनवा दे

तू चाहे तो सब में मतभेद बढ़ा दे 

तू चाहे तो सारे मतभेद मिटा दे 


हे स्वार्थ !

तेरे रास्ते पर चलने वाले

जिसके सामने नाक रगड़ते हैं

समय आने पर उसी की नाक

कटवाने से भी नहीं चूकते

बार - बार वो उसी थूक को हैं चाटते

जिसे वो हर बार खुद ही हैं थूकते 


हे स्वार्थ !

तेरा अंत न होना यह निश्चित करता है

कि तू मानवता का अंत करने के लिए

काफी है , काफी है , काफी है।।



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