गूलर के फूल
गूलर के फूल
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गांव के कुंए के साथ ही,
वह गूलर का पेड़,
हमारे रहस्यों का राजदार,
जिसके हथेली सी तने पर,
दो फूल गोद दिया था,
कुरेद कर मैंने और तुमने।
अरसा गुज़र गया,
इन्तजार में हूं कि,
कभी तुम आ जाओ,
तो उसे मिटाकर,
बेचारे बेकसूर पेड़ को,
बेवजह की तानों से छुडा लेते।
क्यों कि उसकी बिरादरी,
जिनके अपने आंगन में कभी
कोई गुल खिला ही नहीं,
हमारी जिंदगी की बेशकीमती,
लम्हों की निशानी पर,
तंज कस अपमानित कर थकते नहीं।
