ग़ज़ल
ग़ज़ल
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मुझको पलकें भिगोते हुये देखना
उसने चाहा था रोते हुये देखना।
और कुछ रोज तअ़ल्लुक़ निभा मेरी जां,
मुझको बर्बाद होते हुये देखना।
झील दरिया समंदर ये बादल सभी,
उसकी आँखों में सोते हुये देखना।
तुमने कह तो दिया पर यूँ आसान नहीं,
ग़ैर का तुमको होते हुये देखना।
मेरी हसरत है जाना तुझे रातभर,
अपने काँधे पे सोते हुये देखना।
