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ग़ज़ल

ग़ज़ल

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कुछ इस तरह तय ज़िंदगी का रास्ता होगा,
होंगे पत्थर कहीं, कहीं कहकशाँ होगा।

झूठ के पास होंगी सौ-सौ दलीलें मगर,
जो सच होगा वो बेजुबाँ होगा।

ओ मुझे बात-बात पे सताने वाले, सोच तो सही,
मैं अगर सच में रूठ गया तो क्या होगा?

कोई नजूमी हो, कैसा ही चारागर हो,
जब इश्क़ होगा तो लादवा होगा।

तू नफरतों के लिए मर मैं मोहब्बतों के लिए,
फिर देखते हैं, किसका लहू राएगाँ होगा। 


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