फ़रमान
फ़रमान
कविता से बेईमानी मत करना, कभी भी मत करना।
शायरी में सियासत मत करना, कभी भी मत करना।
कहानी में झूठ मत कहना, कभी भी मत कहना।
कुछ ना आए तो मत कहना, कभी भी मत कहना।
काफ़िये मिलाना बन्द, कर सको तो कर देना।
तुकबंदी से जल्द निज़ात, पा सको तो पा लेना।
जो बीती सो कह देना, जो मन में हो वो कह देना।
कुछ ना आए तो मत कहना, कभी भी मत कहना।
ज़्यादा-ज़्यादा कहते हो? कह सकते हो, चलने दो।
ना बिना कहे रह सकते हो? तुम पक्के हो, चलने दो।
हैं लफ्ज़ अभी मज़बूत
नहीं? किताब पढ़ो और चलने दो।
ख़्याल तुम्हारे पास नहीं? तो रहने दो, छोड़ो अभी।
गहरा-गहरा लिखना है? क्यों लिखना है?, सोचो तो।
सीधा-सीधा कहना है? क्यों कहना है? सोचो तो।
क्यों लिखने, क्यों कहना का उत्तर है, तो कहो।
वरना तो सब लेखक है यारों, कहते हैं? कहने दो।
मौन स्वयं है महाकाव्य एक, मौन रहो गर हो सके।
ना रह सको तो तुम कहो, शायद! तुम्हारी फितरत है।
कुछ आए रोज़, तो रोज़ कहना, खूब कहना, कहते रहना।
ना आए कुछ तो मत कहना, कभी भी मत कहना।।