एक दिवस दादा दादी के नाम
एक दिवस दादा दादी के नाम
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दादा दादी जब घर में आते
झोली भरकर खुशियां लाते
रोज सुबह हम घूमने जाते
लड्डू पेड़े हलवा खाते
अपना छोड़कर मुझे मनाते
रात को चंदा तारे दिखाते
दादा दादी जब घर पर आते
छोटी शरारत मैं भी करता
कुछ चिड़चिड़े वह भी होते
लेकिन हम फिर घुल-मिल जाते
चैन से लूडो कैरम खेलते
दादा दादी जब घर में आते
दादी के कान सुनते कम
दादा चिल्लाते भरते दम
बड़ा अनोखा मेल दोनों का
चूहा बिल्ली जैसे बुढ़ापा
दादा दादी का दिवस आज
उनकी महात्ता समझे समाज
कोटि नमन उनके चरणों को
यह संदेश पहुंचे विश्व को।
