एक दीप वतन के
एक दीप वतन के
जलेंगे दीप वतन के लिए
एक दीप अन्तर्मन के लिए
जो वीर विदा हो चुके
लिपटकर तिरंगों में
एक दीप उस कफन के लिए
जलेंगे दीप वतन के लिए!
चीर निन्द्रा में जो सोया है
घना अंधकार में खोया है
समझ सका न निज जीवन को
प्रकाश बढ़ेंगे उसके पथ के लिए
जलेंगे दीप वतन के लिए!
जो लोग मन को मार गया
निज जीवन से हार गया
राहें भी तकती नहीं अब
मंजिल कहीं दिखती नहीं है
उसके मंजिल और मनन के लिए
जलेंगे दीप वतन के लिए!
जिस प्रकृति ने हमें उगाया
माँ-बाप से मिलवाया
रिश्तों-नातों को दिखलाया
स्नेह-प्यार से मन को भरकर
जीवन का मधुर गीत सुनाया
उसकी ममता और आंचल के लिए
जलेंगे दीप वतन के लिए!
आने वाले नस्लों के लिए
धरा पर उगे फसलों के लिए
पशु-पक्षी बाग-बगीचे
नदी-तालाब पर्वत-झरनों के लिए
उसकी हिफाजत के खातिर
एक दीप गगन के लिए
जलेंगे दीप वतन के लिए।
