एक औरत
एक औरत
औरत ! कितना अजीब सा लगता है न ये शब्द औरत
सच में बहुत अजीब होती है ये औरत ।
किसी की मां , तो किसी की बहन होती है ये औरत,
किसी की पत्नी तो कहीं किसी की हमसफ़र होती हैं ये औरत,
इतने सारे रिश्तों में ढल जानें के बाद भी ,
आजतक कोई इसे समझ नहीं पाया ।
जिसने जिस रूप में देखा उसने उसको वैसे जाना ।
और जिनके समझ में ये औरत आई ही नहीं उसने उसको कमज़ोर और बदचलन समझा।
लेकिन मुझे तो ये समझ नहीं आया कि वो कमज़ोर और बदचलन कैसे हो गई ।
एक औरत ही होती है जो हर एक रिश्ते को अच्छे तरीके से संभालना जानती हैं , खुद टूट जाती हैं लेकिन रिश्तों को टूटने नहीं देती।
वह सबसे हार सकती है सबसे लड़ सकती है लेकिन कभी भी अपने आपको कमज़ोर नहीं समझती।
औरत अगर अपने दिल की हर बात बताने लग जाए तो आधे रिश्ते यूं ही टूट जाएंगे ।
ये औरत चुप्पी वाला विष पीकर चुप रहती है
और सब कुछ सह लेती है इसलिए रिश्ते बने हुए हैं ।
कमज़ोर और बदचलन तो हम लोगों की सोच होती है,,, औरत नहीं ..... !
