दर्द य मोहब्बत
दर्द य मोहब्बत
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क्या करूँ
यह खौफ़ ए दिल
मोहब्बत पे जीतता नहीं
जो इश्क़ अब मरने लगा
वो नफरत से अब भी
मरता नहीं
सांसें बेहिसाब ले लूँ
यह खोख़ला सीना
कभी भरता नहीं
वो आवाम ए हिन्द की
आवाज़ आ जींद पर
आज भी सिर क्यों
उठता नहीं
जो चैन इस लहू ए जिस्म को
मुझे पीने में हैं
जो दर्द मुझे इसके बहने से हैं
महसूस नहीं होता वो ग़म
जो मुझे यह कहने में हैं
शायद वक्त आ गया
उन अधूरे शब्दों को पूरे
करने का
जिनके लिए स्याही तो
कम नहीं थी पर बोलने का
हौसला भी ना था
उस दुनिया को जिसमें हम तो थे
पर मन कहीं और था।
