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Mayank Badola

Others

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Mayank Badola

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दो भाई

दो भाई

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थे दो भाई, हुए ग़ुलाम।

अब अंग्रेज़ों की ग़ुलामी करना ही बन गया उनका काम। 

फिर उनमें उमंग जागी,

निश्चय किया की हम आज़ादी पाएंगे,

और उसके लिये कुछ भी कर जाएंगे। 


ग़ुलामी से हो गई थी नफरत,

अब 'मैं’ के लिए ना थी फुरसत। 

'हमें' आज़ाद होना है,

और अंग्रेज़ों का नाम अपने भविष्यकाल से धोना है। 


भाइयों की धरती पर कुछ बेटे पले,

और जिन्नाह, गाँधी, नेहरू ने निश्चय किया,

की भारत का नाम इस दुनिया में फुले फले,

चाहे इसके लिए वह दुनिया से अलविदा कहकर चलें। 


बेटों की जोड़ी पड़ी अंग्रेज़ों को भारी,

समझ गए वह की अब ख़त्म उनकी पारी।

दुम दमाकर भाग गए वह अपने स्थान,

पर उससे पहले बना गए पाकिस्तान। 


अब दोनो भाई अलग हुए,

और हिंदुस्तान, पाकिस्तान के नाम से मशहूर हुए।

पर ग़ुलामी की जगह करने लगे वह एक दूसरे से नफरत,

और अब केवल 'मैं' के लिए थी फुर्सत 


फिर रिश्वतखोरी और बेमानी जैसी बीमारियों ने,

भाइयों के शरीरों को जकड लिया,

और इन देशों की प्रगति को पकड़ लिया।

दोनों भाइयों ने सोचा की क्या किया जाए?

क्यों ना इसका इल्ज़ाम अपने भाई पे लगा दिया जाए?


फिर खून-खराबे हुए और युद्ध हुए,

ऐसे देशों में जहाँ राम, रहीम और बुद्ध हुए।

गांधीजी की सत्याग्रह गयी भाड़ में,

अब तो भेजना है अपने भाई को कबाड़ में।


यह क्या हो रहा है?

क्या दोनों भाइयों का दिल सो राहा है?

सालों से प्रेम, भाईचारे का क़त्ल हो रहा है,

और लोगों के दिलों को कष्ट तक नहीं हो रहा है।


इस सब को अब रोकना होगा,

नफरत को आग में झोंकना होगा।

ताकि दो भाई फिर से मिल सके,

ताकि सीमा के किवाड़ फिर से खुल सके,

ताकि दोनों भाई साथ साथ रह सके,

और हम साथ साथ है, यह दुश्मनों से कह सके।


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