STORYMIRROR

नीलम गुप्ता (नजरिया)

Others

3  

नीलम गुप्ता (नजरिया)

Others

देर रात

देर रात

1 min
196

जब तुम देर रात तक नहीं आते हो

अनहोनी की आकांक्षा से मेरा दिल घबराता है

वो तो भला हो इस मोबाइल का

मिला इस पर तुम्हारा फोन करती बातें

जब यह कहीं दिल जा कर, राहत सुकून पाता है


आज की इस भाग दौड़ में, समय किसी के पास नहीं है

लेकिन आज का इंसान एक दूसरे से फोन पर अधिक बतलाता है

पहले दूर रहने पर, सब अनजान से हो जाते थे

अब वीडियो कॉल कर अपनो को, देख राहत पाता है


कहते हैं इसकी लत बुरी, लेकिन काम यहीं आता है

पहले अकेले बैठे रहते थे, अब इसमें दिल लगा, दिमागी सुकून पाता है

आस पड़ोस की चुगली न कोई, न निंदा किसी की करते हैं

लगाकर मूवी रहते मस्त, देर रात तक लुत्फ उठाते हैं।



Rate this content
Log in

More hindi poem from नीलम गुप्ता (नजरिया)