चल पड़ा हूं
चल पड़ा हूं
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नदी की तेज़ धार में पत्थर सा अडा़ हूं
मुश्किलों के आसमान में बाज़ सा उड़ा हूं
बहोत ठोकरें खाकर अब उठ खड़ा हुआ हूं
सूनेपन की फिक्र छोड़कर भीड़ से अलग मुड़ा हूं
तू चाहते जितने ज़ुल्म कर ले ऐ ज़िन्दगी
देख तेरा सामना करने मैं अकेला बढ़ चला हूं ।