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Sharad Kumar

Others

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Sharad Kumar

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बुढ़ापा

बुढ़ापा

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आओ

उम्र ढलने का मज़ा लें

कि ज़िन्दगी हमारे लिए कोई फ़लसफ़ा है अब

अब आलम कितना जुदा है

ये जो सर के बालों की सफेदी है

इसमें बरसों के तज़ुर्बे का रंग चढ़ा है


रोते हुए दुनिया में क़दम रखे थे

देखो उस पल से अब कितना फासला है

माँ की लोरी का मज़ा क्या था

उन खिलौनों में आखिर रखा क्या था

लड़कपन क्या था, जवानी क्या थी

उस गोरी के दामन की कहानी क्या थी


रिश्ते-नाते निबाह सारे

राहों के उतार चढ़ाव सारे

अब इन बातों में क्या बाकी है

यादों की पोटली आँखों में लिए घूमें आओ

इन कांपते हुए हाथों से

कुछ बची हुई बाज़ियाँ खेलें

मौत सिरहाने पर है मग़र

नींद अब भी सुकूँ से आती है

इतना ही काफी है ऐ ज़िन्दगी!


जीते हुए जीना आ गया

अश्क़ आँखों में सीना आ गया

लोग इस पड़ाव तक आने से घबराते हैं

यहाँ मुंह में इक दांत नहीं बाकी 

और लब अब भी मुस्काते हैं।


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