ब्रज गुलाल
ब्रज गुलाल
देखन गयो फाग ब्रज मा , फस गयो भारी झामेलन में
छिप के रंग मोए डाल गयो , सखी रेे होरी खेलन में ।।
रंग कर उस छलिया के रंग में, भूल गया दुनिया सारी
नाचन लागा ऐसे , जैसे कोई ब्रज की नारी
बाबरा सा है गयो, साधु संतन के मेंलन में
छिप के रंग मोए डाल गयो , सखी रेे होरी खेलन में।।
ब्रज रज - लाल गुलाल,जब मोए तन सो लगा
जाको बखत मुख से निकला , राधा राधा
राधे राधे रटने लगा , रसिकजनों के कीर्तन में
छिप के रंग मोए डाल गयो , सखी रेे होरी खेलन में।।
नंदगांव के होरियारे गावे,आज ब्रज में होरी रे रसिया
देखो कैसे लठ्ठ बजाए रही , बरसाने की सखियां
मची थी भारी भीड़ , रंगीली ब्रज गलियन में
छिप के रंग मोए डाल गयो , सखी रेे होरी खेलन में।।
राधे तेरो श्याम रंग है सच्चा , थक जाऊ धोय धोय कर
तब जानू क्यों आज भी , रंगा पड़ा है पीलीपोखर
जग का रंग फीका लागे, कोई पहुंचादे मोए वृंदावन में
युगल छवि की प्रेम में रंग जाऊ,सखी रेे होरी खेलन में।