बक्से
बक्से
बस बक्से ही बक्से हैं
ज़िन्दगी के इस सफर के
कुछ नीचे दबे पड़े हैं
बचपन की यादों से भरे हैं
बहुत ही प्यारे क्षण हैं
पर आज के दिन में
बिल्कुल निश्चल हैं
कुछ तो ऊपर छिपा दिए हैं
दुछत्ती पर
ताले भी लगा दिए हैं
कभी छिप कर इन्हें देखेंगे
कुछ सपनों को फिर से छुएंगे
पर न कभी समय मिला
चाभी भी अब याद नहीं
कहाँ रखी थी
शायद वह भी हो किसी एक बक्से में
कुछ बड़े हो गए बच्चों के
छोटे छोटे कपड़ों के हैं
टूटे फूटे खिलौनों के हैं
वे अब इनसे खेलेंगे नहीं कभी
ये तो हमने उस समय को
बक्सों में बंद करके रखा है
ये मेरे छोटे हो गए कपड़ों के हैं
कभी हम ऐसे भी थे
ये तुम्हारे कपड़ों के हैं
कभी तुम भी ऐसे ही थे
ये जब हम पहाड़ों पर गए थे
ये जब समंदर के पास गए थे
इस बक्से में वे चीज़ें जब तुम बीमार पड़े थे
इस में वे जब तुम अकेले रहने गए थे
ये बक्सा बेटे को पहली बार दिया था
घर से बाहर जाते हुए
ये बेटे ने हमें दिया था
पहली बार वापस आते हुए
इस बक्से में हमने इकट्ठा की थीं
आने वाली बहू की सौगातें
इस बक्से में रखी थीं
माँ बाबू जी की कुछ यादें
कुछ बक्से रखे हैं आगे काम आएँगे
ज़िंदगी जब तक है
जारी रहेगा सफर
जुड़ते रहेंगे बक्से
कुछ उम्मीदों से भरे
कुछ यादों से ।
