बिना मजिंल का मुसाफ़िर
बिना मजिंल का मुसाफ़िर
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मैं अलग-अलग जानवरों से भरा हुआ
इस जंगल में एक भटकता हुआ मृग हूँ।
किसी को पता नहीं की मैं कौन हूं।
सब मेरे लिए यहाँ अनजान है,
पता नहीं की कौन यहाँ कैसा है।
सबको मानता हूँ मैं अपना
पर वे मेरे मांस और खुशबू के लिए है अपना ।
जिससे मैं बिल्कुल था लापता ।
सब यहाँ स्वार्थी है
कोई किसी का यहाँ नहीं है
यहाँ बस सब अपने लिए जीते हैं।
अभी मुझे यहाँ से निकलना हैं
पर यह बहुत कठिन हैं
क्योंकि यहाँ एक बड़ा भूलभुलैया है,
जहाँ हर कोई भटक रहा हैं।
