बीती बातें याद न कर
बीती बातें याद न कर
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बीती बातें याद न कर
जी में चुभता है नश्तर
हासिल कब तक़रार यहाँ
टूट गए कितने ही घर
चाँद-सितारे साथी थे
नींद न आई एक पहर
तनहा हूँ मैं बरसों से
मुझ पर भी तो डाल नज़र
पीर न अपनी व्यक्त करो
यह उपकार करो मुझ पर